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अपने संघर्षों एंव इच्छा शक्ति के द्वारा अपने मकसद में कामयाब हो जाता है इंसान

कांगड़ा। इंसान अगर ठान ले हमें जीवन में समाज के लिए कुछ करना है और उस सपने को सच करने के लिए अपने संघर्षों एंव इच्छा शक्ति के द्वारा अपने मकसद में कामयाब हो जाता है। ऐसी ही कहानी है हिमाचल प्रदेश में पहाड़ों के दुर्गम इलाकों में रह रहे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं को देने के लिए दृढ़ संकल्पित नीरज ठाकुर की उनके जीवन में आये तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद उन्होंने अपने सपनों को सच किया। नीरज ठाकुर का जन्म सन् 1974 में जिला कांगड़ा के इंदुरा तहसीली के छोटे से गाँव भोगरवां में एक राजपूत परिवार में हुआ था, इनके पिता एक किसान थे, उस समय यह इलाका हिमाचल प्रदेश और पंजाब का बार्डर एंव घने जंगल में बसे होने के कारण यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश का अति पिछड़ा इलाका था इस गाँव की कुल आबादी महज 300 लोगों की थी इन्हीं लोगों के बीच में इनका बचपन बीता और इसी भोगरवां गाँव के एक प्राइमरी स्कूल में इनकी पांचवी तक कि पढ़ाई हुई इसके बाद इन्होंने सीनियर सेकेंडरी स्कूल भोगरवां से ही अपनी दसवीं तक कि पढ़ाई पूरी की। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण इनको अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी और अपने पिता जी के साथ खेतों में काम करना शुरू कर दिया। मगर दिल से इनकी इच्छा डाक्टर बनने की थी मगर परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण इनका ये सपना कभी पूरा नहीं हो सकता था। एक दिन नीरज ठाकुर घर से यह सोचकर निकले की किसी अस्पताल में नौकरी करके कुछ काम सीख लूंगा और अपने गाँव में आकर अपनें गाँव के गरीब जनता के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या को दूर कर उनकी सेवा करूगा,उस समय पहाड़ों में बसे इनके गाँव में स्वास्थ्य संबंधी कोई सेवा या अस्पताल उपलब्ध नहीं थीं। अपने अथक प्रयास से ये पंजाब प्रांत के होशियारपुर जिले के तहसील दसुआ का  एक गाँव नंगल विहालां के सपैया क्लिनिक में नौकरी करना शुरू कर दिया। जहाँ इन्होंने दो सालों तक कड़ी मेहनत कर मेडिकल संम्बन्धी बहुत कुछ कार्य सीखा और दो सालों बाद सन् 1998 में  नीरज ठाकुर ने कुछ चिकित्सकों के सहयोग से वहीं पर अपना पाँच बेड का अस्पताल शुरू कर दिया जिससे इनका वहां के बड़े- बड़े डाक्टरों से पहचान हो गयी और घर की आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी, इसके बाद इन्होंने सन् 2001में होशियारपुर की तहसील मुकेरियां के शहर नंगाला में मुस्कान अस्पताल के नाम से 15 बेड का  अस्पताल शुरू कर दिया जो की अपने बेहतर स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं एंव सेवा मुहैया कराने के कारण काफी लोकप्रिय हुआ, लेकिन इनका सपना था अपने गाँव के गरीब जनता का सेवा करने का और इसी उद्देश्य से इन्होंनें सन् 2005 में अपने पैतृक गांव भोगरवां में अपनें लोगों के बीच स्थापित कर दिया जहाँ समय-समय पर शहर के चिकित्सक आकर अपनी सेवाएं देतें थें मगर उसी वर्ष हिमाचल के निचले क्षेत्र होने के कारण बरसात एंव नदियों में बाढ़ आने से रास्ते बंद हो जाते थें जिसके कारण डाक्टरों को पहुँचने में असुविधा होती थी और मरीजों को जान का खतरा हो जाता था इस समस्या से निजात पाने के लिए इन्होंने अपना अस्पताल जिला कांगड़ा के तहसील पतेहपुर के एक गाँव राजा का तालाब में सूर्या हास्पीटल के नाम से किराये के मकान में शुरू किया उस समय कोई गैर सरकारी अस्पताल नहीं था और सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन तक नहीं मिलती थीं और उस समय नीरज ठाकुर जी ने क्षेत्र की जनता के लिए अपना अस्पताल खोल कर बहुत बड़ी सुविधा उपलब्ध करा दिया जिससे क्षेत्र के गंभीर से गंभीर मरीज वहां इलाज के लिए आने लगें मगर जगह किराये पर होंने के कारण छोटी पड़नें लगी फिर नीरज ठाकुर जी ने सन् 2011 में खुद अपनी जमीन खरीद कर वहाँ 50 बेड का एक मल्टीस्पेसिलिटी हास्पीटल बनवाना शुरू कर दिया जो सन् 2013 में बन कर तैयार हो गया और उसी समय प्रधानमंत्री जी द्वारा चलाई गयीं योजना B.P.L परिवारों के कार्ड धारकों के ईलाज के लिए पंजीकृत करवा लिया और ये हिमाचल प्रदेश का पहला NAVH – सेटिफाइड हास्पीटल बन गया और इसमें हिमाचल प्रदेश का पहला प्राईवेट ब्लड बैंक खोला गया और पहला डायलिसिस सेन्टर भी बनाया गया यह हास्पीटल अब हिमाचल प्रदेश का लोकप्रिय हास्पीटल बन गया है 
अब नीरज ठाकुर जी के चार-पांच अस्पताल हिमाचल प्रदेश में हो गयें हैं !
इनके दोनों बच्चें मैडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं ताकि अपने पिता की तरह यह भी मरीजों की सेवा कर सकें !
 और इस तरह अपने दृढ़ संकल्पों एंव कड़ी मेहनत के बल पर अपने क्षेत्र के जनता के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नीरज ठाकुर जी अपने हास्पीटल में 15 से 20 सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टरों द्वारा सुविधा प्रदान करा रहें हैं और समय-समय पर हिमाचल प्रदेश के कई संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया गया है !
आज अपने साहस और संघर्षों के बल पर नीरज ठाकुर जी ने अपने सपनों को सच कर दिखाया !!

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