सहारा जीवन न्यूज
लखनऊ। शहर में सराका आर्ट गैलरी में असम के युवा मूर्तिकार डॉ बिनॉय पॉल के पेपर पल्प और बांस से तैयार 20 लघु मूर्तिशिल्पो की एकल प्रदर्शनी शीर्षक “द टेल ऑफ मैजिकल बिंग्स‘‘ लगायी गयी। जिसका उद्घाटन प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग मुकेश कुमार मेश्राम ने किया। इस प्रदर्शनी की क्यूरेटर वंदना सहगल और कोऑर्डिनेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना हैं।क्यूरेटर वंदना सहगल, डॉ पॉल के कलाकृतियों पर बताया कि असम के कलाकार बिनॉय पॉल मिश्रित मीडिया में काम करते हैं। इनकी कृतियां पारंपरिक लोक कलाओं, लोक गीतों, तकनीक और सांस्कृतिक लोकाचार पर आधारित है जो उनके रचनात्मकता का मुख्य उद्देश्य है। यह कागज पर ऐक्रेलिक या लघु मूर्तियां हो सकती हैं जो वह पेपर पल्प के साथ बनाते हैं। पौराणिक कहानियाँ मूल विचार हैं जो वह बनाते हैं।उसमें प्रतिध्वनित भी है। बिनॉय के लिए, कला एक विशिष्ट व्यवसाय है, जहाँ उन्होंने कला को एक रचनात्मक माध्यम में जीवन के प्रतिनिधित्व के रूप में देखने और निर्माण करने में परंपरा को एक तामझाम के रूप में लिया है। वह रचनात्मक डिजाइनों में एक सुसंगत आकार के रूप में जीवित प्रगतिशील आवेग को कालातीत सार्वभौमिक के लिए व्यक्त और संचार करते हैं। भारतीय लोक कला सदियों पुरानी है। इन्होने उस लोक को रूपांतरित और विकसित किया है जो हमेशा समृद्ध भारतीय विरासत का एक अभिन्न अंग रहा है और आगे भी रहेगा। जनजातीय परंपरा अक्सर मेलों, त्योहारों, देवी-देवताओं के चित्रण में जीवन शैली और परंपराओं को प्रतिबिंबित करती है। वह उन्हें दैनिक ग्रामीण जीवन, रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, पक्षियों, जानवरों और प्रकृति और पृथ्वी के तत्वों के चित्रण के साथ ओवरलैप करता है। अति प्राचीन काल से, बराक घाटी के लोग पारंपरिक रूप से शिल्पकार रहे हैं और उन्होंने शिल्प के तत्व को आगे बढ़ाने के लिए मिश्रित मीडिया को चुना है। बिनॉय पॉल की कला असम में बराक घाटी की मूर्ति निर्माण के शिल्प और संस्कृति में रची-बसी है। उनका कला कार्य उनके रूप, भौतिकता, रंग और तकनीक में भारत के सामान्य सांस्कृतिक विषयों से प्रेरित है। भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि डॉ बिनॉय पॉल बराक घाटी के सिल्चर असम के रहने वाले हैं। इन्होने मूर्तिकला में कला की शिक्षा एवं शोध कार्य असम विश्वविद्यालय से किया है। लगभग दस वर्षों से लोक व समकालीन कला में सक्रियता से दखल दे रहे हैं।