महाकवि घाघ ने कभी लिखा था ” उत्तम खेती मध्यम वान।
निसिध चाकरी भीख निदान।।
यह कहावत कुछ वर्ष अप्रासंगिक रही लोगों को लगने लगा कि घाघ के समय की यह मान्यता रही होगी परन्तु आज यह लागू नहीं होती लेकिन इधर कुछ वर्षों में चाकर को यंत्र मान लिया गया है, जिससे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा है, खैर विषम परिस्थितियों में भी मनुष्य को संतुलन बनाये रखना चाहिए।