तेरी फितरत –
योगेश कुमार
हर बात को यूँ छन्न से, हंसी में उड़ा देती हो -२
तपती अँगीठी की तरह, पानी की बूँदो को सज़ा देती हो,
यूँ जलते तो कभी नहीं देखा, फिर क्यूँ इतना जलाती हो?
इतनी गर्मी कहाँ से लाती हो?
जब भी कुछ कहता हूँ सीरियस,
जब भी कुछ कहता हूँ सीरियस,
ख़ुद बचती हो या फिर मुझे बचाती हो,
हाँ कभी करती नहीं, और ना भी मुझसे करवाती हो,
लगती तो है फ़ितरत, तूफ़ानों की बनी हुई -२
इतना patience कहाँ से लाती हो?
मैं तुम्हारी सीरत को ग़लत नहीं कहता,
ख़ुद डरती हो, मुझे ज़्यादा डराती हो,
इश्क़, प्यार, मोहब्बत ऑनलाइन नहीं हुआ करते-२
फिर मिलने की बात पे क्यूँ इतना घबराती हो,
अब क्या सिर्फ़ क़यामत के दिन मिलोगी,
तैयार हूँ मरने को, जन्नत हो या जहन्नुम कहीं तो मिलोगी,
मैं तुम्हारी नीयत को ग़लत नहीं कहता-२
पर ये क्या लहज़ा है के ना पानी नसीब है मुझे,
और ख़ुद प्यासी रह जाती हो …
इतनी गरमी कहाँ से लाती हो ..
इतनी गरमी कहाँ से लाती हो …