Sahara Jeevan

[current_date format=’l, F d Y’]

Latest News
अमेठी की ग्राम पंचायत सोमपुर मनकंठ में आयोजित राधा फाउंडेशन के बैनर तले आयोजित निःशुल्क नेत्र शिविर में उमड़ी मरीजों की भीड़ इन्हौंना में अजय ट्रेडर्स के मालिक नकली Castrol Mobil बेचते रंगे हाथों गिरफ्तार,140 डिब्बे नकली मोबिल बरामद किया अमेठी में सपा जिला अध्यक्ष राम उदित यादव की अध्यक्षता में पार्टी की आगामी रणनीतियों पर चर्चा कर संगठन को मजबूत बनाने पर दिया गया जोर अमेठी में समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं की मासिक बैठक में पार्टी की आगामी रणनीतियों पर हुई चर्चा दिव्य, भव्य और स्वच्छ महाकुम्भ का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए निकाली गई स्वच्छता रथ यात्रा थाना जगदीशपुर पुलिस द्वारा पॉक्सो एक्ट वांछित 01 अभियुक्त गिरफ्तार एवं अपह्रता बरामद 

© 2022 All Rights Reserved.

उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी की ओर से पंजाबी भाषा की उत्पत्ति पर हुई संगोष्ठी

सहारा जीवन न्यूज

नवीं शताब्दी के नाथ योगी गोरखनाथ पंजाबी के आदि कवि थे

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी के ओर से ‘‘पंजाबी भाषा की उत्पत्ति‘‘ विषयक संगोष्ठी का आयोजन गुरुवार 24 अक्टूबर, को इंदिरा भवन के कक्ष संख्या 442-444, में किया गया। इस संगोष्ठी में बताया गया कि नवीं शताब्दी के नाथ योगी गोरखनाथ पंजाबी के आदि कवि थे। इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक अरविन्द नारायण मिश्र ने संगोष्ठी में उपस्थित सम्माननीय वक्ताओं को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया।संगोष्ठी में डॉ. गंगा प्रसाद शर्मा ने कहा कि पंजाबी भाषा का गौरव पूर्ण इतिहास है। यह भारोपीय भाषा परिवार की आधुनिक भारतीय भाषा है। इसका विकास सौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। कुछ विद्वानों के द्वारा इसे गांधारी या प्राकृत से भी विकसित माना जाता है, जो नाम भेद के कारण अलग दिखती हुई भी मूल स्वभाव में एक ही हैं। यह भारत और पाकिस्तान जो देशों में बोली जाती है। दोनों देशों में दो भिन्न लिपियों का उपयोग होता है पहली लिपि है गुरुमुखी और दूसरी शाहमुखी। शाहमुखी लिपि अरबी फारसी से विकसित हुई है। शाहमुखी लिपि, अरबी लिपि की फारसी वर्णमाला का संशोधित रूप है, जो फारसी लिपि की वर्णमाला का ही विकसितत रूप है। इसमें पंजाबी की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए अतिरिक्त प्रतीकाक्षर हैं और यह भी दाएँ से बाएँ ही लिखी जाती है। शाहमुखी लिपि का इस्तेमाल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुस्लिम समुदाय के लोग पंजाबी भाषा में अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए करते हैं। पाकिस्तान में स्थित सिख समुदाय दोनों लिपियों का इस्तेमाल करता है लेकिन अपने धार्मिक विचार व्यक्त करने के लिए गुरुमुखी को ही प्राथमिकता देता है। भारत में इस लिपि का उपयोग जम्मू और कश्मीर राज्य की पोथारी / पोथावरी / पोतोहारी बोली लिखने के लिए होता है।         वरिष्ठ विद्वान नरेन्द्र सिंह मोंगा के अनुसार नवीं शताब्दी में पैदा हुए नाथ योगी गोरखनाथ पंजाबी के आदि कवि थे। योगी गोरखनाथ के पंजाबी बोली में रचित काव्य से ही पंजाबी साहित्य का सूत्रपात हुआ। गोरखनाथ ने लिखा है – खाएआ वी मरेआ, अणखाएआ वी मरेआ, गोरख राएआ, संजमी तरेआ। खदे झरे सलूणे, खरे मीठे उपजे रोग, कहे गोरख सुणहु सिद्धो अन्न पाणी जोग। हसिआ खेलिआ रहिआ संग, काम क्रोध न करिआ संग। हसिआ खेलिआ गाएआ गीत, दृढ़ कर राखि आपना चीति।इसके साथ ही आमंत्रित विद्वान दविन्दर पाल सिंह ‘बग्गा‘ ने डॉ. मोहन सिंह का उदहारण पेश करते हुए कहा कि उनके अनुसार पंजाबी साहित्य कोई नवीन साहित्य नहीं है। पंजाबी भाषा आठवीं नौवीं सदी में एकदम उत्पन्न नहीं हुई बल्कि इस भाषा ने धीरे-धीरे विकास किया और कई पड़ाव से निकलती हुई कि दशा तक पहुंची पंजाबी भाषा में और भाषाओं के साहित्यिक प्रभावों को भी स्वीकार किया एक तरफ वैदिक संस्कृति प्रकृति और अपभ्रंश भाषा का विचार साहित्य था। पौराणिक और कथाएं प्रमाण से भरपूर खजाने उन साहित्य में प्राप्त होते हैं साहित्य वेदों से शुरू होकर शास्त्रों पुराणों और उपनिषदों महाकाव्य नाटकों तक फैला हुआ है टेक्स्ला विश्वविद्यालय काफी समय तक हर प्रकार की विद्या के लिए एक विशेष केंद्र रह चुका था इन सब के होते हुए यह किस प्रकार से हो सकता है की पंजाबी भाषा पर जो हमारी प्राचीन साहित्यिक भाषाएं हैं उनसे अलग रह सकती। इसलिए कहा जा सकता है की पंजाबी भाषा कोई नवीन भाषा नहीं है अपितु ना जोगियों का साहित्य सूफी मत बाबा फरीद जी मुगल काल आदि में भी पंजाबी भाषा का बोलबाला रहा इसका प्रचार प्रसार मुख्य रूप से आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के संपादन के पश्चात जन सामान्य तक पहुंचा। सस्सी पुन्नू हीर रांझा के संदर्भ में जो गीत लिखे गए वह भी पंजाबी भाषा का ही एक प्रारूप है।मेजर मनमीत कौर सोढ़ी के अनुसार पंजाबी एक इंडो-आर्यन भाषा है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में पंजाबी भी शामिल है। हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 100 मिलियन से अधिक बोलने वालों के साथ पंजाबी दुनिया में 10वीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में, 30 मिलियन से अधिक बोलने वालों के साथ यह 5वीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है। वैदिक से विकसित शास्त्रीय संस्कृत पंजाबी शब्दावली का मुख्य स्रोत है और सौरसेनी प्राकृत शास्त्रीय संस्कृत के सबसे निकट है। सौरसेनी अपभ्रंश ने पंजाबी को जन्म दिया और यह संतों की भाषा की जननी भी थी, जिसे संत-भाषा के रूप में जाना जाता है।संगोष्ठी में प्रो० हेमांशू सेन ने कहा कि भारतीय ज्ञान, दर्शन और चिंतन की परंपरा को सक्षम और सफल रूप से वहन करने वाली पंजाबी – भारोपीय भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है। पंजाबी गुरुमुखी और शाह मुखी लिपियों में लिखी जाती है। भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र की मूल भाषा है। आधुनिक भारतीय आर्य भाषा परिवार की प्रमुखतम भाषाओं में से एक पंजाबी की उत्पत्ति मूल रूप से संस्कृत के परवर्ती रूप – पाली प्राकृत और अपभ्रंश, शौरसैनी अपभ्रंश से हुई है। इसके आरम्भिक कवि बाबा फरीद, नानक साहब, गुरु अर्जन देव आदि हैं।इस क्रम में मंजीत कौर ने कहा कि भाषा एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा हम अपने विचारों और भावनाओं को दूसरों के साथ व्यक्त कर सकते हैं। किसी भी भाषा के साहित्य को उसे भाषा को बोलने वाले लोगों के संपूर्ण जीवन प्रवाह से अलग नहीं किया जा सकता। लोगों के जीवन प्रवाह को सही दिशा निर्देशन देना उनकी राजनीतिक सामाजिक सांप्रदायिक और धार्मिक दशा का बहुत बड़ा योगदान होता है। आज से 70 वर्ष पूर्व यही विचार प्रचलित थे कि पंजाबी साहित्य श्री गुरु नानक देव जी की वाणी से ही प्रारंभ होता है। यह विचार शायद धार्मिक संस्कारों या इस क्षेत्र में खोज की कमी के कारण हुए। बाबा फरीद शकरगंज 1173-1266 ई जिनकी वाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी साहिब जी में दर्ज है। कार्यक्रम में लखविन्दर पाल सिंह, मनप्रीत सिंह, मीना सिंह, अंजू सिंह, महेन्द्र प्रताप वर्मा सहित अन्य विशिष्ट जन उपस्थित रहे।

99 Marketing Tips
Digital Griot