भारतीय अध्यात्म केप्रणेता:स्वामी विवेकानंद-रवीन्द्र कुमार रतन, स्वतंत्र-लेखन
जब-जब धरती पर अन्याय, अनाचार और अनीति के काले बादल मंडराते है , तब-तब भगवान किसी न किसी रूप में प्रकट होते ही हैं चाहे वह संत हो, महात्मा हो, मर्यादा पुरुषोत्तम हों या लीला धारी हो lधरा जब-जब विकल होती , मुसीबत का समय. आता। किसी भी रूप में कोई, महा मानव निकल आता lइस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे देश मे समय- समय पर तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार संतों,महा पुरुषों ने जन्म लिया है और उसने जन्म लेकर अपने देश को दुःखद परिस्थियों से मुक्ति दिलाते हुए पूरे विश्व को सुखद – संदेश देने का काम किया है l इससे वे तो आकर्षण का केंद्र बनते ही हैं हमारे देश की धरती भी गौरवान्वित और महिमा मंडित होती है ऐसे ही महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद का नाम आता है lभारतीय सभ्यता-संस्कृति को विश्व स्तर पर स्थापित करनेवाले विश्व-विख्यात आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी का इस धराधाम पर पदार्पण 12 जनवरी 1863 में पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में हुआथाआज हम उस दिन को श्रद्धा के साथ युवा – दिवस ‘ के रूप में मनाते हैं l ये अपने बचपन के दिनों में अत्यंत नटखट स्वभाव के थे l इनके पिताश्री का नाम विश्वनाथ जी और मातेश्वरीका नाम भुवनेश्वरी देवी था । बालकनरेन्द्र नाथ को पांच वर्ष की आयु मेंअध्ययन-अध्यापन मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट विद्यालय में भेजा गया lलेकिन पढ़ाई में अभिरुचि न होने के कारण इनका पूरा समय खेल कूद में बीतता था l सन 1879 में इन्हें जनरल असेम्बली कालेज में प्रवेश दिलाया गया l इनपर अपने पिताश्री के पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति प्रधान विचारों का तो प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन माताश्री के भारतीय धार्मिक आचार-विचारों का गहरा प्रभाव अवश्य पड़ा था l यही कारण है कि वे अपने जीवन के आरम्भ के दिनों में धार्मिक प्रवृत्ति मे ढलते गए और धर्म के प्रति आश्वस्त होते रहे l इश्वर ज्ञान की उत्कंठा जिज्ञासा में वे बार-बार चिन्तामग्न होते हुए विरक्त रहे l जब जिज्ञासा का प्रवाहमान बहुत अधिक उमर गया, तो वे अपने अशांत मन की शांति के लिए तत्कालीन संत- महात्मा रामकृष्ण परमहंस जी की ग्यान छाया में शरण ली l परम हंस ने उनकी योग्यता की परख पलकझपकते ही कर ली l उन्होंने कहा ‘ इश्वर ने तुम्हें समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए ही भेजा है और तबसे वे राम कृष्ण परम हंस के परम शिष्य बन गए l शिकागो के सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने जब वे पहुंचे तो उन्हें वहां परख न पाया कोई और अयोग्य समझ मात्र 2 मिनट का समय ही इन्हें संबोधन करने को दिया गया था l स्वामी जी सभा में निश्चिंत बैठे रहे और अलग-अलग धर्मों के विधानों को एकाग्र होकर सुनते रहे l सबका एक ही दावा था, ‘ मेरे धर्म जैसा कोई धर्म नहीं, मेरे सिद्धांत जैसा कोइ सिद्धांत नहीं और मेरे बंश जैसा कोई बंश नहीं l’ थोड़ी देर बाद धर्म- संसदमें स्वामी विवेकानंद जी का नाम की उद्घोषणा की गई l वे मंच की ओर बढ़े तब उनकी आयु मात्र 30 की थींl 30 बर्ष की ज्योति-पुंज था , ज्ञान पुष्प का सुरभि कुंज था, मस्तक पर अरुणिमा वो रेखा, चकित रह गया जिसने देखा l शब्द सुदर्शन धारी था वो , देव दूत अवतारी था वो.l’स्वामी जी कुछ पल चुप रह कर सभा का मुआयना किए, उसके बाद वे सिर्फ पांच शब्द बोले:- Pyare Sisters and Brothers of Amerika ‘ अमेरिका के मेरेप्यारे भाईओं एवं बहनों ‘ बोल कर हर दिल अजीज बन गए lकलकता के एक कुलीन कायस्थ परिवार में जन्मे विवेकानंद का आध्यात्मिकता की ओर झुकाव था l स्वामी विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश, भारत में स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया l बाद में विश्वधर्म संसद1893में जैसा कि ऊपर बताएँ हैं, भारत का प्रतिनिधित्व करने संयुक्त राज्य अमेरिका गए l विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार और प्रचार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया l भारत men विवेकानंद को एक देशभक्त सन्यासी के रूप मे माना जाता है और उनके जन्म दिन को भी राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है lज्ञान प्राप्त करने की सर्वोत्तम विधि एकाग्रता:- स्वामी विवेकानंद के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने की सर्वोत्तम विधि एकाग्रता है l वे कहा करते थे कि जितनी अधिक एकाग्रता होगी उतना ही अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है l एकाग्रता तभी आ सकती है जब मनुष्य में अनाशक्ति हो ।स्वामी जी कहते हैं कि तथ्यों का संग्रह शिक्षा नहीं है l सच्ची शिक्षा है तन को आसक्ति द्वारा एकाग्र करने की क्षमता विकसित करना l इससे सभी तरह के तथ्यों का संग्रह किया जा सकता है lनारी का सम्मान:- स्वामी जी की ख्याति देश-विदेश में फैली है थी l एकबार की बात है विवेकानंद समारोह के लिए विदेश गये थे और उनके समारोह में बहुत से विदेशी लोग आए हुए थे l उनके द्वारा दिए गए भाषण से एक विदेशी महिला बहुत ही प्रभावित हुई l वह उनके पास आई और स्वामी जी से बोली कि में आपसे शादी करना चाहती हूँ ताकि आपके जैसा ही मुझे गौरब शाली पुत्र की प्राप्ति हो l इस पर स्वामी जी बोले कि क्या आप जानती है कि मैं एक सन्यासी हूँ भला मैं कैसे शादी करसकता हूँ? अगर आप चाहो तो मुझे अपना पुत्र बना लो l इससे मेरा सन्यास भी नहीं टूटना और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा l य़ह सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी जी के चरणों में गिर पडी और बोली आप धन्य हैं प्रभो l आप इश्वर के समान है l जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं हों सकते lउन्होंने 39 बर्ष की आयु की जीवन यात्रा में देश और दुनिया को इतने अच्छे-अच्छे और शानदार विचारों से मार्ग प्रशस्त किये कि उनमें से किसी एक बात को भी उतार लेते हैं तो शायद जिंदगी बदल जाए l उन्होंने जो ग्यान दिया उनमें से अगर पांच को भी जीवन मे उतार लेते हैं तो जीवन संवर जाएगा l1 . इंसान के अन्दर दया का भाव होना चाहिए l दुसरों को मदत करने का भाव भी होना चाहिए l2. अपने लक्ष्य पर ध्यान लगायेl उन्होंने कहाकि उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य. की प्राप्ति न कर लें l3. नारी का हमेशा सम्मान होना चाहिए l4. जिंदगी में अपने गुरु को कभी नहीं भूलना चाहिए l5. ग्यानी और बुद्धिमान बनिए lउन्होंने पांच विचार भी दिए l1. चिंतन करो, चिंता नही, नित नये विचारों को जन्म दें l2. एक समय पर एक ही काम करें l3. उठो जागो काम मे लग जाओ l4 .जब तक जीना तब तक सीखना 5 ये दुनिया एक जीम है, यहां हम अपने को मजबूत बनाए। इस प्रकार हम पाते हैं कि स्वामी विवेकानंद अपने विचारों से, अपने ग्यान दीप से समाज की विकृतियों , तिमिरों को सतत समाप्त कर ग्यान का प्रकाश फैलाया हैं lअतः हम पाते हैं कि भारतीय अध्यात्म के प्रणेता स्वामी विवेकानंद जी निर्विवाद रूप से हैं l
सेनानी-सदन, मकान सं0 30सुभाष नगर, ( pokhra)Hajipur,वैशाली ( bihar)