मुकेश कुमार कौशल
शुकुल बाजार अमेठी, कभी कांग्रेश की सरकार में और जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री हुआ करते थे तब यह डाक बंगला अपने आप में अपनी भव्यता और
सुंदरता के लिए पूरे क्षेत्र में जाना जाता था। इस डाक बंगले में देश के प्रधानमंत्री रुका करते थे और डाक बंगले पर चहल-पहल होती रहती थी लेकिन
राजीव गांधी के बाद इस डाक बंगले को राजनेताओं से उपेक्षा ही मिली जबकि आबादी से सटा यह डाक बंगला अगर रखरखाव और जीर्णोद्धार होता तो क्षेत्र वासियों के लिए लाभकारी साबित होता। कई सरकारें आई और गई कई जनप्रतिनिधि आए और गए लेकिन डाक बंगले का जीर्णोद्धार नहीं हो सका सबसे खास बात यह कि पूर्ण बहुमत से बनी भाजपा सरकार में क्षेत्र के राज्य मंत्री सुरेश पासी भी डाक बंगले का जीर्णोद्धार नहीं करा सके जबकि कई बार क्षेत्र वासियों ने राज्य मंत्री सुरेश पासी से डाक बंगले के उद्धार के लिए कहा भी। क्षेत्र के प्रबुद्ध जनों की माने तो अंग्रेजी हुकूमत के समय 1940 ई0में सिंचाई व्यवस्था की देखरेख हेतु विभाग द्वारा निरीक्षण भवन डाक बंगलाका निर्माण कराया गया था ।जो राजनैतिक उतार चढाव के चलते रख रखाव में शिथिलता आती गई और धीरे-धीरे यह निरीक्षण भवन क्षीणता की चपेट में आ गया भवन की छत में दरारें फट गई खिडकी और किंवाड दीमकों के आहार बन गये और जंगली जानवरों का आशियाना यह डाक बंगला बन गया। जबकि इससे पूर्व यह डाक बंगला शीर्ष नेताओं की चहल पहल से गौरवान्वित हुआ करता था। आज यह डाक बंगला आवारा पशुओं और जंगली जानवरों का आशियाना बनकर रह गया और सबसे खास बात यह है कि बंद पड़े
डाक बंगले को एक इंटर लॉकिंग सड़क लगाई जा रही है। जिसका कोई लाभ नहीं जब डाकबंगला ही उपेक्षित पड़ा है तो सड़क की क्या जरूरत थी डाक बंगला के सामने नहर की पटरी पर पहले से ही डामर रोड बनी हुई है। ऐसे में इंटरलॉकिंग की जरूरत वहां पहले है जहां पर आबादी है और लोगों का आना जाना है। यह डाक बंगला तो क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के उपेक्षा के चलते जंगली
जानवरों और आवारा पशुओं का आशियाना बन गया है।