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लंबी कानूनी लड़ाई से दशकों बाद कोहरा तालुकदारी का बाबू भूप सिंह के वंशजो को मिला पुन अधिकार

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आजादी की दिशा में लंबी कठिन साहसिक यात्रा का सामूहिक प्रयास था । उन असंख्य यौद्धाओं जिन्होने अपनी मातृभूमि के मुक्ति की लड़ाई लड़ी उनमें कोहरा अमेठी के तत्कालीन तालुकदार बाबू भूप सिंह भी थे जो 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नेता और अगुवा बनकर उभरे। इस संबंध में बाबू भूप सिंह के वंशज प्रो उमा नाथ सिंह के सुपुत्र डा संजय सिंह से चर्चा की। स्वतंत्रता के लिए समर्पित और अन्याय का मुकाबला करने के लिए अटूट वीरता का परिचय देते हुए व्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ अवध में क्रांति की अलख जगाने में सम्लित हो गए अवध के नवाब वाजिद अली शाह को जबरन अपदस्थ करने व अव्यवहारिक महालबाड़ी कर प्रणाली लागू करने जिससे राजस्वकरो में कई गुना बढ़ोतरी थी के विरोध में वेगम हजरत महल द्वारा लखनऊ रेजीडेंसी के घेराव का आवाहन के बाद लखनऊ पहुचे अवध के नवाब और तालुकेदारों की संयुक्त सेना का हिस्सा बने। लखनऊ रेजीडेंसी को मुक्त कराने व ब्रिटिश उपनिवेश ईस्ट इंडिया कम्पनी को मदद के लिए कलकत्ता से कर्नल राऊतन के नेतृत्व में आ रही ब्रिटिश सेना को अवध की सीमा पर रोकने की रणनीति के तहत सुल्तानपुर प्रतापगढ़ रायवरेली के तालुकेदारों ने जौनपुर सुल्तानपुर सीमा पर स्थित चांदा में युद्ध का नया मोर्चा खोल दिया। भयंकर युद्ध के साथ अवध का संग्राम प्रसिद्ध चांदा अमहट कदूनाला तक जारी रहा जिसे कम्पनी शासन ने नेपाल के गोरखा सेना की मदद से जीत लिया।इन महान स्वतंत्रता संग्राम में कोहरा के तालुकदार बाबू भूप सिंह अपने स्वतंत्र मनोयोग के साथ बहादुरी से लड़े जिसके कारण बाद में क्रांति के असफल हो जाने व ब्रिटिश राजशाही के नेतृव में बनी सरकार ने कोहरा की तालुकदारी पर भयानक कर अधिरोपित करने निशस्त्र करने के साथ कोहरा तालुकदारी को कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन कर लिया।

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