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बोली एवं भाषा के समन्वय से ही साहित्य का विकास सम्भव- डॉ अर्जुन पाण्डेय 

सहारा जीवन न्यूज

अमेठी। अवधी साहित्य संस्थान अमेठी की ओर ‘बोली- भाषा और साहित्य’ विषय पर आधारित विचार गोष्ठी का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती जी एवं गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा पर पूजा अर्चना एवं माल्यार्पण से हुआ। विचार गोष्ठी की शुरुआत दिवस प्रताप सिंह की वाणी वंदना से हुआ।विषय का प्रवर्तन करते हुए अध्यक्ष अवधी साहित्य संस्थान अमेठी डॉ अर्जुन पाण्डेय ने कहा कि सामान्य रूप से बोली मौखिक तथा भाषा लिखित एवं मौखिक दोनों होती है। जहां बोली लिपि एवं व्याकरण से मुक्त होती है वहीं भाषा लिपि एवं व्याकरण युक्त होती है। भाषा का क्षेत्र व्यापक एवं बोली का क्षेत्र सीमित होता है।बोली का विकसित रूप भाषा होती है। बोली एवं भाषा के समन्वय से ही साहित्य विकसित हो सकता है।समाज एवं राष्ट्र का अस्तित्व साहित्य के बिना असम्भव है। मुख्य अतिथि कैप्टन पी एन मिश्र ने कहा कि बोली एवं भाषा का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध होता है।साहित्य सम्वर्द्धन में इनकी भूमिका अहम है।हमें निज भाषा पर गर्व होना चाहिए ‌अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार शब्बीर अहमद सूरी ने कहा कि भाषा एवं साहित्य संस्कृति की धरोहर है। प्रत्येक राष्ट्र के पास अपनी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। विशिष्ट अतिथि संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है,जिस पर उस देश की सभ्यता एवं संस्कृति निर्धारित होती है। रामेश्वर सिंह निराश ने कहा कि हमारी हिन्दी सागर से भी गहरी है। हमें अपनी भाषा पर नाज है।अमर बहादुर सिंह ने कहा कि भाषा वही पूज्य है,जिसमें हमारी अभिव्यक्ति हो। कैलाश नाथ शर्मा ने कहा कि पशु- पक्षी एवं समस्त जीव- जन्तुओं की अपनी अलग भाषा होती है।भाषा बिना साहित्य सम्वर्द्धन सम्भव नही होगा। गोष्ठी में राम बदन शुक्ल पथिक, चन्द्र प्रकाश पाण्डेय मंजुल,दिवस प्रताप सिंह,सुधा अग्रहरि, जगन्निवास मिश्र,डॉ अभिमन्यु कुमार पाण्डेय, अंजलि तिवारी, अनुभव मिश्र एवं श्याम सुंदर शुक्ल ने भी सम्बोधित किया।

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