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सुखी जीवन का मूल मंत्र परसंताप का मन से त्याग- अनुराग पांडेय

लखनऊ (अवनीश मिश्रा)। भगवान श्री परशुराम जी प्राकट्योत्सव के पंचम दिवस आज ठाकुरगंज में बोलते हुए, आचार्य श्री अरविन्द जी महाराज ने कहा कि श्री मद्भागवत के प्रसंग, ‘आधुनिक जीवन शैली को समयोचित परिमार्जित करने का संदेश प्रदान करते हैं’ आचार्य जी ने बताया कि विकारों का दमन ही उनका उद्धार है पूतना, बकासुर की बहन थी तथा मायावी थी। कंस के मंत्रियों ने उसे सलाह दी थी कि बच्चों को मरवा दो तो तुम्हारा शत्रु स्वतः समाप्त हो जाएगा। स्तन पर कालकूट विष लगाकर पूतना कृष्ण स्तन पान कराने लगी, इसमें उसके पूर्व जन्म की उसकी इच्छा भी समाहित थी पर कृष्ण ने उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए उसे निजधाम प्रदान किया। आचार्य जी ने कहा कि- ‘राजा को अपने अधीनस्थ मंत्रियों के साथ प्रेमपूर्ण संबंध होने चाहिए भयभीत मंत्री राजा को उचित सलाह नहीं देते’।
इससे एक संदेश भर भी मिलता है कि जब तक मन की बुरी इच्छा को नहीं मार लेते तब तक राम, कृष्ण या परशुराम के चरित्र का सही अर्थ नहीं जान पाते अतः मन की दुराशा को मारो तब कथा में प्रवेश करो’।
आचार्य जी ने बताया कि प्रभु के अवतारों में तीन अवतार ऐसे हैं जिन्होंने स्त्रियों को भी न्यायोचित दण्ड दिया जिसमें भगवान परशुराम ने स्वयं अपनी माता रेणुका को, राम ने ताड़का को तथा कृष्ण ने पूतना को दण्डित भी किया अरविन्द जी महाराज ने प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कालिय नाग के निवास के कारण यमुदा जल प्रदूषित हो रहा था, एक बार गोचारण के समय कृष्ण के स्वसखा ने यमुना जल पी लिया तथा अचेत हो गया, कृष्ण ने यमुना जल को विशुद्धीकरण का संकल्प लिया तथा कालिय नाग को वहाँ से सुदूर भेज दिया। आचार्य जी ने कहा कि आज की सरकारें ‘जल शुद्धीकरण’ का बड़ा प्रयास कर रही हैं किन्तु भगवान कृष्ण ने यह कार्य द्वापर में ही कर दिखाया था। आचार्य जी ने यह भी कहा तब एक कालिय नाग था अब जगह-जगह कालिय नाग हैं तटों पर कब्जा कर बैठे हैं तथा जल को प्रदूषित कर रहे हैं गोवर्द्धन पूजा को प्रकृति पूजा बताते हुए आचार्य जी ने कहा कि आज जगह-जगह पेड़ काटे जा रहे हैं, पर्वतों का उच्छेदन किया जा रहा है- प्रकृति का क्षरण हो रहा है, इसी कारण ऋतुओं में असंतुलन है- अतिवृष्टि- अनावृष्टि है- भगवान कृष्ण ने ‘गोवर्द्धन पूजा’ के द्वारा देव पूजा से कहीं ज्यादा जरूरी ‘प्रकृति पूजा’ है, का सन्देश दिया। साथ ही यह भी बताया कि ‘जो पूजा करने योग्य नहीं हैं, पवित्रता के पर्वत से बहुत दूर हैं- ऐसे व्यक्ति की पूजा न करके प्रकृति रूपी सहचारी का उपासक जीव को होना चाहिए। प्रकृति का संवहन करो दोहन नहीं’ आज की कथा-यज्ञ में महापौर संयुक्ता भाटिया, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रान्त प्रचारक प्रमुख, श्री यशोदानन्दन जी व प्रान्तीय समरसता प्रमुख (आर0एस0एस0) श्री राज किशोर जी अतिथि के रूप में उपस्थित रहे इस अवसर पर मुख्य रूप से लालजी प्रसाद पाण्डेय, अमिताभ पाण्डेय, दीपू शुक्ला, सुनीता पाण्डेय, अंशू मिश्रा, शक्ति बाजपेयी, कमलेश मिश्रा, सुमित दीक्षित, कृष्णा शर्मा, महेन्द्र द्विवेदी, अम्बरीश वर्मा, संतोष शुक्ला, मृदुल पाण्डेय, जितेन्द्र शर्मा, विजय कुमार मिश्रा, सतेन्द्र अवस्थी, अभिरूचि बाजपेयी, पूनम तिवारी, गोपाल नारायण शुक्ला, बाल किशोर तिवारी, सतीश कुमार दीक्षित, संतोष कुमार द्विवेदी, शेष कुमार मिश्रा, मूलचन्द्र मिश्रा, राघवेन्द्र अवस्थी, सनी साहू, राहुल पाण्डेय, टिंकू ठाकुर, अजीत पाण्डेय, पूनम सिंह, आनन्द मिश्रा, पंकज शुक्ला, शर्मिला पाण्डेय, संजय शुक्ला, वन्दना विशेष, पी0एस0 तिवारी, अवध प्रकाश शुक्ला, अभय तिवारी, पुलकित शुक्ला, जितेन्द्र द्विवेदी, विशाल सोनकर, रजत तिवारी, अंकित गुप्ता, मंजरी शुक्ला, एडवोकेट अनुराग पाण्डेय, पुलकित शुक्ला अध्यक्ष/संयोजक सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे।

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