रिपोर्ट: मोहम्मद असलम लखीमपुर खीरी। बज़्म फ़रोगे अदब की जानिब से तरही मुशायरों की सिलसिला-वार महफिल का दसवाँ आयोजन मोहल्ला शेखसराय, खीरी कस्बे के मदरसा सुल्ताने हिंद में आयोजित हुआ। इस बार का मिसरा-ए-तरह था “वो थका मुसाफिर था रहगुज़र बताती है”, जिस पर देशभर से आए शायरों ने अपने दिलकश अशआर पेश किए।
मुशायरे की सदारत बज़्म फ़रोगे अदब के सदर जनाब आमिर रज़ा ने की और निज़ामत की ज़िम्मेदारी निभाई जनाब इलियास चिश्ती ने।
सदारती तक़रीर में आमिर रज़ा ने कहा, “बीते 10 महीनों से चल रही इस श्रृंखला ने नए और उभरते शायरों को न केवल मंच दिया है, बल्कि उर्दू अदब की नयी पौध को भी सींचा है।”
अपने कलाम में उन्होंने कहा:
“इसलिए नहीं डरता मुश्किलों से मैं आमिर, मुझको मेरी मुश्किल ही रास्ता दिखाती है।”
इस मुशायरे की रौनक बढ़ाई मज़्मे उर्दू सीतापुर के कनवीनर खुश्तर रहमानी ने, जिनका शेर खूब सराहा गया:
“पीठ पर बंधा बच्चा, सिर पर है लदी ईंटें, यह कैसे रोज़ो-शब मुफलिसी दिखाती है।”
अन्य शायरों के चुनिंदा अशआर:
डॉ. एखलाक हरगामी:
“मेरे गांव का मौसम अब भी है वहीं एखलाक, अब भी गांव में कोयल गीत गुनगुनाती है।”
शहबाज़ हैरत चिश्ती:
“आप मेरे और उनके दरम्यान मत आएं, ये मामला मेरा और उनका ज़ाती है।”
उमर हनीफ:
“वो शिकार करती है बाम पर खड़ी होकर, आते जाते लोगों पर बिजलियां गिराती है।”
नफीस सीतापुरी:
“हाफ़िज़ा ज़रा देखो उस ज़हीन लड़की का, सबको याद रखती है मुझको भूल जाती है।”
शोहरत अंसारी:
“मां से बढ़के दुनियां में कोई हो नहीं सकता, पहले ख़ुद नहीं खाती बच्चों को खिलाती है।”
नफ़ीस वारसी:
“कामयाब होती है कौम वो हक़ीक़त में, कौमियत की ख़ातिर जो अपने सर कटाती है।”
अय्यूब अंसारी:
“यूं लगे है नज़रों को जब वो मुस्कुराती है, जैसे सब्ज़ पत्तों पर ओस खिल खिलाती है।”
सैफुल इस्लाम:
“एक ख़ुमार छाता है हर तरफ फ़ज़ाओं में, झूम कर ग़ज़ल मेरी जब वो गुनगुनाती है।”
मो० आमीन:
“दोस्तो से पैसे का लेन देन मत करना, इस अमल से रिश्तों की डोर टूट जाती है।”
हसन अंसारी:
“आज तक नहीं भूला वह हसीन सा चेहरा, वो मेरे तसव्वुर में रोज़ रोज़ आती है।”
डॉ. एराज अरमान:
“काट दी ज़बा लेकिन फर्क क्या पड़ा ज़ालिम, मेरी बे ज़बानी अब दास्तां सुनती है।”
इलियास चिश्ती (निज़ामत के दौरान):
“मसला न हल होगा क्योंकि जनता हूं मैं, वक्त जब मुखालिफ़ हो शह भी मात खाती है।”
इस मौके पर नफीस सीतापुरी की किताब “गुले नसरीन” का इजरा (लोकार्पण) भी किया गया। मुशायरे में बड़ी तादाद में अदब के दीवानों ने शिरकत की और महफिल को कामयाबी की बुलंदी दी।
— मोहम्मद असलम

Author: Harshit Shrivastav
Sahara jeevan newspaper